लचित बरफुकान (हिंदी)-२
"म्लेंच्छ संहारक :লা-চিত" - कहानी रक्तरंजित शौर्य की चूँकि पहली लड़ाई गोहोटी (आज के गुवाहाटी) में होनी थी, दुश्मन को हराने के लिए एक उपयुक्त सेनापति का चयन करना आवश्यक था। सेना के प्रति निष्ठा, दृढ़ता, साहस, वीरता एवं नेतृत्व जैसे आवश्यक गुणों पर चर्चा करने के बाद आखिरकार लचित के नाम पर मुहर लगा दी गई। दूसरे दिन जब दरबार में लचित को बुलाया गया, तब उन्होंने राजा के सामने घुटने टेक प्रणाम किया; तभी एक सिपाही ने उनका मुकुट चुरा लिया। आगबबूले हुए लाचित ने उसका पीछा किया और उसे पकड़ लिया, वह उसका सिर काटने ही वाले थे, तब राजा के क्या हुआ पूछे जाने पर, "इसने मेरा मुकुट चुराकर मुझे अपमानित किया है, और कोई भी जातिवादी योद्धा ऐसा अपमान नहीं सहेगा।" तब राजा ने बताया कि वह लचित की परीक्षा ले रहे थे। वह व्यक्ति जो राजसम्मन को प्राणों से भी श्रेष्ठ मानता है, वह सर्वोत्तम संभव तरीके से सेना का नेतृत्व कर सकता है। लचित परीक्षा में पूरी तरह से सफल हो चुके थे और राजा ने लचित को देश का अपमान धोने हेतु गोहाटी भेज दिया। दूत का संदेश सुनक